जमानत कैसे पाएं और पुलिस हिरासत एवं जेल से कैसे बचें

How to Get Bail and Avoid Police Custody and Jail
भारत में आपराधिक अभियोजन प्रक्रिया सीआरपीसी या अपराध प्रक्रिया संहिता के अनुसार चलती है। यह संहिता अदालतों, वकील, पुलिस, आरोपीयों और शिकायतकरताओं की शक्तियों और कर्तव्यों को निर्दिष्ट करती है। इस संहिता में (अन्य बातों के बीच) किस को गिरफ्तार किया जा सकता है, कैसे गिरफ्तार किया जा सकता है, कब गिरफ्तार किया जा सकता है, किन परिस्थितियों के तहत गिरफ्तारियां की जा सकती हैं, गिरफ्तारी के समय किस प्रक्रिया का पालन किया जाना ज़रूरी है, और किन अधिकारियों को गिरफ्तार करने की शक्ति है इत्यादि का विवरण और तरीका पाया जा सकता है। गिरफ्तारी के बाद बंदी / अभियुक्त को कहाँ भेजा जाता है इसका भी विवरण मिलता है। गिरफ्तार व्यक्ति को पुलिस हिरासत (किसी पुलिस थाने में हवालात) में, या न्यायिक हिरासत (जेल) में भेजा जा सकता है। धरा ४९८अ (498a)/४०६/३४ के अंतर्गत आरोपित किसी व्यक्ति को यदि गिरफ्तार होने का डर है, तो हमें कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए।

जमानत सीआरपीसी द्वारा वर्णित एक और विषय है। जमानत किसी विशेष आपराधिक मामले के अंतिम निपटारा होने से पहले आरोपी व्यक्ति को अस्थायी स्वतंत्रता प्रदान करने का तरीका है। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि आरोपों की गंभीरता को मद्दे नज़र रखते हुए, आरोपित व्यक्ति मामले के पूर्णतः निपटारे तक पूरी तरह से गिरफ्तारी से बच सकता है, केवल पुलिस हिरासत में या केवल न्यायिक हिरासत में समय बिताने के लिए मजबूर हो सकता है, या पूर्णतः जमानत पाने में अक्षम हो सकता। अपराध प्रक्रिया संहिता या सीआरपीसी किस व्यक्ति को जमानत दी जा सकती है और जमानत के विभिन्न प्रकारों का विवरण देती है।

अग्रिम ज़मानत दहेज सम्बंधित मामलों सहित सभी आपराधिक मामलों के लिए सब से उत्तम प्रकार की ज़मानत है। यदि आप को अग्रिम ज़मानत मिल जाती है तो आप को अपने आपराधिक मामले के अंतिम निपटारे तक हिरासत में एक भी दिन नहीं बिताना पड़ेगा। ४९८अ (498a) सम्बंधित मामलों में अग्रिम जमानत के महत्व को समझने के लिए इस लेख को पढ़ें। इस प्रकार की ज़मानत की याचिका गिरफ्तारी की सम्भावना की अपेक्षा / प्रत्याशा में डाली जाती है। यदि आप को इस बात का अंदेशा या शुबहा है कि आप को किसी ऐसे अपराध के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है जो आपने किया नहीं है तो आप को अग्रिम ज़मानत की अर्ज़ी डालने का अधिकार है। आप के मानस में इस प्रकार का अंदेशा उत्पन्न होने के कुछ मुख्या कारण निम्नानुसार हो सकते हैं। पत्नी द्वारा थांने में दर्ज़ करी गयी कोई आपराधिक शिकायत, या पत्नी या उस के परिवार द्वारा दी गयी कोई धमकी (मैं तुम्हे नानी याद दिला दूँगी, या हम तुम्हारी ईंट से ईंट बजा देंगे।) धमकियों को हमेशा ज़यादा भाव देना ज़रूरी नहीं है, लेकिन यदि आपकी पत्नी ने आप को दहेज़ उत्पीड़न या किसी और मामले में अभियुक्त बनाने का आवेदन डाला है तो आप को अग्रिम ज़मानत के बारे में गम्भीरता से सोचना चाहिए।

जैसे ही आप को अपने विरूद्ध धारा ४९८अ (498a)/४०६/३४ के अंतर्गत पुलिस को दी गयी शिकायत / उपालम्भ के बारे में पता लगता है, आप को चाहिए कि आप किसी अच्छे वकील से मिलें और गिरफ्तारी पूर्व सूचना या नोटिस ज़मानत, और अग्रिम ज़मानत के लिए आवेदन डालने का निर्देश दें अथवा इन चीज़ों के बारे में उस के साथ बैठ कर बात करें। ये दो अलग अलग तरह की ज़मानतें हैं लेकिन ये एक ही तरह की ज़मानतें हैं। मैं अपनी बात को कुछ खुल कर समझाने की कोशिश करता हूँ। आप का वकील आप के पक्ष में अग्रिम ज़मानत का आवेदन बनाएगा (जिस में वो आप के हिसाब से मामले के जो तथ्य हैं, उन का वर्णन करेगा) और उपयुक्त क्षेत्रीय ज़िला एवं सत्र न्यायालय में अर्ज़ी डालेगा। मामले की सुनवाई की तारीख लगेगी . इस दिन आप को चाहिए की आप किसी व्यक्ति को अदालत भेजें ताकि वो जा कर देख सके कि आपका वकील कितनी चुस्ती से आप का पक्ष जज के सामने प्रस्तुत कर रहा है / कर पाता है। अदालत ने महिला अपराध प्रकोष्ठ या महिला थाना या महिला सैल को नोटिस जारी कर दिया होगा, और इस तारिख पर वहाँ इस थाने या विभाग का कोई अधिकारी आएगा . अधिकारी अकेला नहीं आएगा। एक सरकारी वकील / लोक अभियोजक भी वहाँ आएगा, जिस का काम पुलिस का पक्ष अदालत के सामने रखना है।

सरकारी अभियोजक पुलिस अधिकारी के साथ बात करेगा और न्यायाधीश को बोलेगा कि अभी तक कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गयी है, अतः ज़मानत देने की कोई ज़रुरत और कोई आधार नहीं है। जज ऐसा दिखायेगा जैसे की वो सरकारी अभियोजक की बात को मान गया है, और आप के वकील से इस दलील के बारे में उस की राय पूछेगा। आप का वकील मौखिक तौर से आप कि अग्रिम ज़मानत अर्जी वापस ले लेगा और जज से दरख्वास्त करेगा कि यदि पुलिस भविष्य में आप को इस मामले में गिरफ्तार करने की राय स्थापित करती है तो आप को गिरफ्तारी से पहले ७ दिनों की मोहलत सूचना द्वारा दी जाए। जज आप के वकील की दरख्वास्त को मंज़ूर कर लेगा और पुलिस को यह निर्देश देगा कि वे आप को, या आप के माता पिता को, या आप को और आप के माता पिता को एक साथ, गिरफ्तार करने की यदि राय बनाते हैं, तो उन्हें ऐसी सूरत में ७ दिन कि मोहलत, एक लिखित सूचना के रूप में देनी पड़ेगी। इस प्रकार की ज़मानत को सूचना ज़मानत या नोटिस ज़मानत कहते हैं।

यदि इस जमानत याचिका को खारिज कर दिया जाता है, तो आप उच्च न्यायालय में आवेदन कर सकते हैं. हाई कोर्ट में भी खारिज कर दिया जाता है, तो आप सुप्रीम कोर्ट में आवेदन कर सकते हैं. आमतौर पर उच्च न्यायालय स्तर पर या उस से पहले इस याचिका पर राहत मिल जाती है। आप ने सुना होगा कि "ज़मानत नियम है और कारावास अपवाद है।" इस का यह अर्थ है कि जजों का झुकाव उन सब लोगों को ज़मानत पर आज़ादी देने की तरफ़ होता है जो गवाहों को डराने धमकाने वाले नहीं दीखते।

यदि (और जब) शिकायत प्राथमिकी में बदल जाती है, तो विवेचना / तहकीकात अधिकारी आप को गिरफ्तारी की सूचना भेजेगा। जैसे ही आप को यह सूचना मिलती है (जिसे नोटिस भी कहा जाता है), वैसे ही आप को चाहिए कि आप अग्रिम ज़मानत की अर्ज़ी उपयुक्त अदालत में डालें। ये अर्ज़ी डालने के लिए वही प्रक्रिया प्रयोग करें जो आपने सूचना ज़मानत लेने के लिए प्रयोग करी थी। यदि आप का वकील आप को आपके ४९८अ (498a) मामले में कामयाबी से अग्रिम ज़मानत दिलवाना चाहता है, तो उसे कुछ मापदंडों पर खरा उतरना पड़ेगा। यदि आप का अग्रिम ज़मानत आवेदन कामयाब हो जाता है तो आप को तकनीकी रूप से ज़मानत पर बरी होने से पहले कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ेंगी। अदालत अपने ज़मानत आदेश में आप पर कुछ रोक-टोक लगा सकती है।

अग्रिम जमानत और नोटिस जमानत के लिए वकील को दिया जाने वाला शुल्क एक मुश्त राशि हो सकता है, या यह दो अलग अलग किस्तों में हो सकता है। पहले विकल्प के पक्ष में तर्क है कि सूचना ज़मानत और अग्रिम ज़मानत वास्तव में एक ही प्रक्रिया के दो कदम हैं। जो लोग दुसरे विकल्प को तरजीह देते हैं उन का कहना है कि जितना काम उतने दाम, और भयभीत हो कर किसी ऐसी कारर्वाई के पैसे खर्च नहीं करने चाहियें, जिसको करने की शायद कभी ज़रुरत ही न उठे। आम तौर पर वकील मुवक्किल द्वारा दोनों क़दमों का एक ही बार में भुगतान करने पर छूट के रूप में प्रोत्साहन देते हैं। प्राथमिकी दर्ज होने के बाद जो वास्तविक आपराधिक मामला आता है, उस का शुल्क अलग से तय किया जाता है।

गिरफ्तारी पर न्यायिक रोक या गिरफ्तारी का स्थगन एक ऐसी अवधारणा है, जो असल में अग्रिम ज़मानत वाला ही काम करती है। इस तरह की रोक उत्तर प्रदेश जैसे कुछ उन राज्यों में उपलब्ध है, जहां अग्रिम ज़मानत का प्रावधान नहीं है। न्यायिक रोक या न्यायिक स्थगन किसी जज द्वारा दिया गया एक ऐसा आदेश होता है, जो किसी निचली अदालत या किसी सरकारी अधिकारी या सरकार या आम आदमी के किसी आदेश या कानूनी कदम को किसी पूर्व निर्धारित समय तक कानूनी तौर से रोक देता है; या ऐसे वक्त तक रोक देता है जब तक किसी कानूनी बिंदु का किसी स्तर विशेष पर फैसला नहीं हो जाता है। गिरफ्तारी पर रोक एक ऐसा आदेश है जो पुलिस को मजबूर कर देता है कि वो आप को या आप के माता पिता को न्यायालय की रज़ामंदी के बगैर गिरफ्तार न कर सके। इस आदेश को प्राप्त करने का तरीका अग्रिम ज़मानत प्राप्त करने के तरीके से मिलता-जुलता होता है। उत्तर प्रदेश में प्रार्थी जनों को गिरफ्तारी पूर्व रोक रुपी राहत के लिए प्रथम उपलब्ध मंच उच्च न्यायालय है, क्यूंकि यू पी में विधायिका ने देश व्यापी आपराधिक प्रणाली संहिता में विचित्र बदलाव कर के उत्तर प्रदेश तक सीमित एक आपराधिक प्रक्रिया संहिता रचित करी है। इस बदलाव के फलस्वरूप पुलिस के वांछनीयता की सीमा से अधिक बलवान बनना का सीधा सीधा प्रकट रूप से हानिकारक असर देश (या यूं कहें कि प्रदेश) के जनतंत्र पर हुआ है।

ट्रांजिट या पारगमन ज़मानत उस ज़मानत को कहा जाता है जिसकी ज़रुरत आप को ऐसी स्थिति में होती है जब आप विदेश से अपने मूल निवास स्थान पर आते हैं और आप को उस स्थान तक जाना होता है जहाँ पर आपके विरुद्ध आपराधिक मामला पंजीकृत किया गया हो, और आप को अपने मूल निवास स्थान से उस स्थान तक अग्रिम ज़मानत आवेदन डालने हेतु जाना पड़े। इस प्रकार की ज़मानत की ज़रुरत सिर्फ उस स्थिति में पड़ती है जब आप के खिलाफ तलाश नोटिस जारी हो चूका हो, और आप (तार्किक है) अग्रिम ज़मानत नहीं ले पाएं हों। इस की ज़रुरत कुछ और स्थितियों में भी पड़ती है, जिन स्थितियों में आरोपी व्यक्ति ट्रांजिट रिमांड से बचना चाहता है।

नियमित जमानत आप को गिरफ्तार किये जाने के बाद या आरोप पत्र दाखिल करने के बाद जो मिलती है वो जमानत है। यह वाक्यांश / शब्द अक्सर उपसर्ग 'नियमित' के बिना लिखा जाता है, जो कि उचित है। ये ज़मानत आप को वो वकील दिलवाएगा, जिसे आपने अपने पंजीकृत आपराधिक मामले को लड़ने का काम दिया है, वो चाहे दहेज़ सम्बंधित हो या कोई और हो। यदि आप को अग्रिम ज़मानत मिल जाता है तो नियमित ज़मानत लेने की कोई ज़रुरत नहीं।

यह सोचना गलत होगा कि अग्रिम ज़मानत के बाद नियमित ज़मानत भी लेनी पड़ती है। ऐसी ग़लतफ़हमी सामान्य ज़मानत में "सामान्य" के बजाय "नियमित" शब्द के प्रयोग से पैदा होती है। जैसा कि अधिकतर पाठकों को मालूम है, हमारे देश में दैनिक वेतन सेवक या अस्थायी कर्मचारी या परखाधीन कर्मचारी उस प्रकार के कर्मचारियों को कहा जाता है जो अभी तक नियमित कर्मचारी की श्रेणी में सम्मिलित न हो पाये हों। यह सब को ज्ञात है कि अस्थायी रोज़गार और नियमित हैसियत किसी भी पूर्णकालिक नौकरी के दो अलग अलग चरण होते हैं। इस ज्ञान को अंतर्मन में रख कर लोग अग्रिम ज़मानत और नियमित ज़मानत की धारणा को एक समानांतर द्वंद्व के रूप में प्रतिग्रहीत करते हैं, और ये मान लेते हैं कि ये दोनों प्रकार की जमानतें एक के बाद एक उस आरोपी के लिए अनिवार्य है जो स्वतन्त्र रहना चाहता है। यह धारणा सच्चाई से कोसों दूर है। यदि आप को अग्रिम ज़मानत मिल जाती है, तो नियमित जमानत लेने की कोई जरूरत नहीं है। अग्रिम अपने आप में पर्याप्त और अंतिम होती है, सिर्फ उस स्थिति को छोड़ कर जहां किसी को निचली अदालत में मुकद्दमे के अंत में सज़ा सुनाई जाये, या फिर आरोपी पक्ष याचिका दायर कर के अभियुक्त की ज़मानत को रद्द करवा दे।अग्रिम ज़मानत और नियमित ज़मानत को लेकर भ्रमात्मक स्थिति बना के रखने में वकीलों के किसी गुट या वर्ग का हाथ है? लेखक को ऐसे किसी षड्यंत्र का ज्ञान नहीं है। इस देश में हर तरह के कार्यकलाप होते हैं।

ध्यान रहे कि प्रत्येक अग्रिम ज़मानत आदेश अपने आप में एक अंतिम आदेश होता है जिस का निहितार्थ यह है कि अभियोग पक्ष किसी भी ज़मानत आदेश के विरुद्ध अपील प्रेषित नहीं कर सकता है, केवल ज़मानत रदद्गी / निरस्तीकरण आवेदन प्रेषित कर सकता है। इस का अर्थ यह भी है कि अग्रिम ज़मानत आवेदक अपने किसी भी आवेदन के खारिज होने पर (फिर वो चाहे किसी भी स्तर की अदालत में प्रेषित क्यों न किया गया हो) गिरफ्तार होने लायक लोगों की श्रेणी में आ जाता है। क्या हम इस से यह निष्कर्ष निकालें कि आप अपने पहले अग्रिम ज़मानत आवेदन के ख़ारिज होते ही गिरफ्तार होने की तैयारी शुरू कर दें। इस अदना लेखक का यह मानना है की अग्रिम ज़मानत आवेदन के रद्द होने को गिरफ्तार होने का संकेत नहीं मानना चाहिए, भले ही वह आवेदन उच्चतम न्यायालय में ही ख़ारिज हुआ हो)। इस बिंदु को समझने के लिए थोड़े विस्तार की ज़रुरत है। ऐसा खुलासा पढ़ने से पहले यह जान लें कि संभवतः गिरफ्तार होने और गिरफ्तार होने की स्थितियां दो अलग अलग स्थितियां होती हैं।

याद रहे कि किसी को भी गिरफ्तार करने की स्थिति में गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा ४१अ (जिस के अंतर्गत अफसर को किसी भी आरोपी को गिरफ्तार करने या न करने की वजह का ब्यौरा देना पड़ता है) को संतुष्ट करना पड़ता है। आरोपी के अग्रिम ज़मानत आवेदन के खारिज होने मात्र से गिरफ्तारी अफसर इस ज़िम्मेदारी से छूट नहीं जाता। इस बात पर भी ध्यान देवें कि यदि अग्रिम ज़मानत आवेदन के ख़ारिज होने का सीधा सीधा फल गिरफ्तारी बन जाये तो फिर आरोपित वर्ग के लोग अग्रिम ज़मानत आवेदन प्रेषित करना ही छोड़ देंगे। क्या समाज में ऐसे कानूनों के लिए कोई स्थान है जो क़ानून पीड़ितों को अदालत की ओर मुँह करने से निरूत्साहित कर सकते हैं? हरगिज़ है, लेकिन ऐसी परिस्थितियों में नहीं हैं जहाँ किसी के जीवन या उस की स्वतंत्रता पर बन आई हो। तीसरी बात पर गौर करें कि गिरफ्तारी की आवश्यकता की तीव्रता अपराध की गंभीरता के साथ साथ बढ़ती है। यह सत्य है कि पुलिस द्वारा हत्या, बलात्कार, मादक पदार्थों से सम्बंधित विधान, अथवा संगठित अपराध से सम्बंधित विधान को तोड़ने वालों को आये दिन उन के पहले अग्रिम ज़मानत आवेदन के ख़ारिज होते ही गिरफ्तार कर लेती है। कभी कभी तो ऐसा भी होता है कि पुलिस ऐसे लोगों को अपना पहला अग्रिम ज़मानत आवेदन डालने हेतु अदालत की ओर जाते हुए ही गिरफ्तार कर लेती है। इस का यह मतलब कतई नहीं निकालना चाहिए कि वे दहेज़ प्रताड़ना आरोपितों और अमानत में खयानत आरोपितों की धार पकड़ शुरू कर देंगे। वास्तविकता इस के ठीक विपरीत है। ऐसी धरा के आरोपियों को आम तौर से उच्चतम न्यायालय स्तर तक अग्रिम ज़मानत आवेदन डालने दिए जाते है। हाँ यह ज़रूर कहा जा सकता है कि कानूनी तौर पे अनपढ़ पुलिसियों के कारनामों का पूर्वकथन इस परिकलन में नहीं किया जा सकता।
विभिन्न प्रकार की ज़मानत (वर्गीकरण)
अनिश्चितकालीन / "स्थायी" अस्थायी / अंतरिम
१) अग्रिम ज़मानत / पेशगी ज़मानत             १) गिरफ्तारी पूर्व अंतरिम ज़मानत
२) नियमित ज़मानत २) पारगमन ज़मानत
३) गिरफ्तारी पर अनिश्चितकालीन रोक ३) गिरफ्तारी पर अस्थायी रोक
   ४) सूचना ज़मानत / गिरफ्तारी पूर्व अनिवार्य सूचना
   ५) बीमारी के चलते अंतरिम ज़मानत
   ६) पारिवारिक कारणों के चलते अंतरिम ज़मानत
   ७) विधान सभा सत्र के चलते अंतरिम ज़मानत, इत्यादि, घृणापर्यंत इतिश्री।।

एक ही अदालत में दूसरी बार अग्रिम ज़मानत आवेदन डालना आम तौर से प्रतिबंधित होता है, लेकिन इस का अपवाद ऐसी स्थिति है जहां मामले की मूलभूत परिवेश में पिछले आवेदम के बाद कोई बुनियादी परिवर्तन हो गया होता है [1] [2]। गिरफ़्तारी के बाद के ज़मानत आवेदनों की बात अलग है, और कभी कभी उन की संख्या काबू से बाहर हो जाती है।इस में हमेशा आरोपी व्यक्ति ज़िम्मेदार नहीं होता, जैसा कि तीस्ता सेतलवाड़ के प्रकरण में देखा गया था। उन की विशेष याचिका को सर्वोच्च न्यायालय की तीन पीठों ने सुनवाई दी थी, जबकि मामला शायद एक पीठ में निपट जाना चाहिए था। न्यायाधीशों ने इस की वजह को शायद गोल-मोल भाषा में समझाया था [3]

(पड़ोसी देशों में अग्रिम ज़मानत के प्रावधान — पाकिस्तान और बांगलादेश में क्रमशः पाकिस्तानी आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा ४९८ [4] और बांगलादेशी आपराधिक प्रक्रिया की धारा ४९८ [5], ये वे धाराएं हैं जो अग्रिम ज़मानत का नियमन करतीं हैं।).

। / In English (about the importance of anticipatory bail in 498a)


स्त्रोत :-


१) (अंग्रेजी में) प्रोसेनजीत सरकार बनाम अज्ञात, १० दिसम्बर २०१४; Indiankanoon.org; कलकत्ता; बिना तारीख़

२) (अंग्रेजी में) उत्पल शर्मा बनाम असम राज्य, २७ फ़रवरी २००४ Indiankanoon.org; गौहाटी; बिना तारीख़

३) (अंग्रेजी में) तीस्ता के ज़मानत आवेदन की अजब दास्तान Singh, R.; The Daily Pioneer; दिल्ली; २५ मार्च २०१५

४) (अंग्रेजी में) पाकिस्तानी अग्रिम ज़मानत क़ानून, पाकिस्तानी आपराधिक प्रक्रिया संहिता धारा ४९८; पाकिस्तान के बारे में एक सर्वग्राही पोर्टल; प्रकाशन का स्थान नहीं दिया गया; २९ अक्तूबर, २०१०

५) (अंग्रेजी में) आपराधिक प्रक्रिया संहिता एवं अन्य कानूनों के अंतर्गत ज़मानत का एक सामान्य अध्ययन; धारा ४९६ ब्लॉग; ढाका; ९ मई, २०१४

द्वारा लिखित
मनीष उदार द्वारा प्रकाशित।

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अंतिम अद्यतन २४ मार्च २०१८ को किया गया
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