भारतीय आपराधिक प्रक्रिया संहिता अध्याय ९ प्रलेख मात्र (हिंदी अनुवाद)

CrPC Chapter IX Bare Text
आपराधिक प्रक्रिया संहिता के ९वें अध्याय के प्रलेख का हिंदी अनुवाद निम्नानुसार है–

अध्याय IX
पत्नियों, बच्चों और माता-पिताओं के रखरखाव के लिए आदेश


धारा १२५ (पत्नियों, बच्चों और माता-पिताओं के रखरखाव के लिए आदेश)

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धारा १२५ के प्रलेख का हिंदी अनुवाद निम्नानुसार है:–

(१) यदि किसी व्यक्ति के पास पर्याप्त साधन हैं और वह निम्नलिखित व्यक्तियों की उपेक्षा करता है या उनका भरण पोषण करने से इंकार करता है-
(a) उसकी पत्नी, जो खुद का भरण पोषण करने में असमर्थ है, या
(b) उसका वैध या अवैध नाबालिग बच्चा, विवाहित अथवा अविवाहित, जो खुद का भरण पोषण करने में असमर्थ है, या
(c) उसका वैध या अवैध बच्चा (जो कि विवाहित बेटी नहीं है) जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है, जहाँ ऐसा बच्चा किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या चोट के कारण खुद का भरण पोषण करने में असमर्थ है, या
(d) उसके पिता या माँ, खुद का भरण पोषण करने में असमर्थ,
तो पहली श्रेणी का कोई मजिस्ट्रेट, इस तरह की उपेक्षा या इनकार के प्रमाण पर, ऐसे व्यक्ति को अपनी पत्नी या उपरोक्त ऐसे बच्चे, पिता या माता के रखरखाव के लिए इतना मासिक भत्ता देने को दिशा-निर्दिष्ट कर सकता है * * * जितना कि मजिस्ट्रेट उचित समझे, और इस मासिक भत्ते का ऐसे व्यक्ति को समय-समय पर भुगतान करने को कह सकता है जिसे मजिस्ट्रेट समय-समय पर निर्धारित करे।

बशर्ते कि मजिस्ट्रेट खंड (b) में इंगित नाबालिग मादा बच्चे के पिता को तब तक उक्त भत्ता देते रहने का आदेश दे सकता है, जब तक कि वह वयस्कता प्राप्त नहीं कर लेती, अगर मजिस्ट्रेट संतुष्ट है कि ऐसी नाबालिग महिला बच्चे का पति, यदि वह विवाहित है, पर्याप्त साधनों से युक्त नहीं है:
[और बशर्ते (आगे ऐलान किया जाता है) कि मजिस्ट्रेट इस उप-धारा के तहत रखरखाव के लिए मासिक भत्ते से सम्बद्ध कार्रवाई के प्रतीक्षाकाल के दौरान, ऐसे व्यक्ति को अपनी पत्नी या ऐसे बच्चे, पिता या माता के अंतरिम रखरखाव के लिए मासिक भत्ता देने का आदेश दे सकता है। और ऐसी कार्रवाई का उतना खर्च, जितना मजिस्ट्रेट वाजिब समझता है देने का आदेश दे सकता है। और उसका (उस पैसे का) ऐसे व्यक्ति को भुगतान करने का आदेश दे सकता है जैसे व्यक्ति को मजिस्ट्रेट समय-समय पर निर्धारित करता है:
और बशर्ते कि अंतरिम रखरखाव के लिए मासिक भत्ते और कार्रवाई के खर्च का आवेदन, जहां तक संभव हो, ऐसे व्यक्ति को आवेदन की सूचना देने की तारीख से साठ दिनों के भीतर निपटाया जाए।]

स्पष्टीकरण। — इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, -
(a) ―नाबालिग‖ का अर्थ है एक व्यक्ति जो भारतीय वयस्कता अधिनियम, १८७५ (१८७५ का ९) के प्रावधानों के तहत अभी अपनी वयस्कता तक नहीं पहुंचा माना जाता है;
(b) पत्नी‖ में एक महिला शामिल है, जिसे उसके पति ने तलाक दे दिया है, या जिसने अपने पति से तलाक ले लिया है, और जिसने दोबारा शादी नहीं की है।

(२) [रखरखाव या अंतरिम रखरखाव और कार्रवाई के खर्च के लिए ऐसा कोई भी भत्ता आदेश देने की तारीख से देय होगा, या, यदि निर्दिष्ट किया जाये, तो रखरखाव या अंतरिम रखरखाव और कार्रवाई के खर्च हेतु आवेदन की तारीख से, यथास्थिति अनुसार।]


(३) यदि कोई भी ऐसा निर्दिष्ट व्यक्ति पर्याप्त कारण के बिना आदेश का पालन करने में विफल रहता है, तो कोई भी ऐसा मजिस्ट्रेट आदेश के प्रत्येक उल्लंघन के लिए, जुर्माना लेने के लिए प्रदान किए गए तरीके से राशि लेने हेतु वारंट जारी कर सकता है, और वारंट के निष्पादन के बाद न चुकाए जाने वाले हर महीने के पूर्ण या आंशिक [रखरखाव के खर्च या अंतरिम खर्च और कार्रवाई के खर्च, यथास्थिति अनुसार] की एवज़ में कथित व्यक्ति के लिए ऐसी अवधि का कारावास घोषित कर सकता है जो एक महीने तक खिंच सकता है, या फिर यदि देय राशि का भुगतान इस से जल्दी किया जाता है तो देय राशि का भुगतान होने तक खिंच सकता है:
और बशर्ते कि इस धारा के तहत देय किसी भी राशि की वसूली के लिए कोई वारंट तब तक जारी नहीं किया जाएगा, जब तक कि उस तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर ऐसी राशि ज़ब्त करने के लिए अदालत में आवेदन नहीं डाला जाता है, जिस पर वह (राशि) देय हुई थी:
और बशर्ते कि यदि ऐसा कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को अपने साथ रहने की शर्त पर भरित-पोषित करने की पेशकश करता है, और वह उसके साथ रहने से इनकार करती है, तो ऐसा मजिस्ट्रेट उसके (पत्नी के) द्वारा वर्णित इनकार के किसी भी आधार पर विचार कर सकता है, और (पति के द्वारा प्रस्तावित) ऐसे प्रस्ताव के बावजूद इस धारा के तहत कोई आदेश पारित कर सकता है, यदि वह संतुष्ट है कि ऐसा करने के लिए न्यायोचित आधार विद्यमान है।
स्पष्टीकरण। — अगर किसी पति ने किसी अन्य महिला के साथ विवाह अनुबंधित किया है या रखैल रखी हुई है, तो यह उसकी पत्नी के उसके साथ रहने से इंकार के लिए न्यायोचित आधार माना जाएगा।

(४) ऐसी किसी भी पत्नी को अपने पति से [नियमित गुज़ारा भत्ता अथवा अंतरिम भत्ता अथवा मुकद्दमे का खर्चा, इन में जो भी प्रसंग उपयुक्त हो] लेने का अधिकार नहीं होगा जो कि व्यभिचार में लीन हो अथवा अपने पति से बिना पर्याप्त कारण के अलग रह रही हो अथवा अपने पति से आपसी सहमति से अलग रह रही हो।

(५) ऐसे प्रमाण पर कि कोई भी पत्नी जिसके पक्ष में इस धारा के अधीन कोई आदेश दिया गया है व्यभिचार रत है, या कि बिना पर्याप्त कारण के वह अपने पति के साथ रहने से इनकार कर देती है, या कि वे आपसी सहमति से अलग रह रहे हैं, मजिस्ट्रेट आदेश को निरस्त कर देगा।

१. कुछ शब्द २००१ के अधिनियम 50 द्वारा छोड़े गए, खंड संख्या २। (२४/०९/२००१ से लागू)।
२. खंड संख्या २, उपरोक्त, द्वारा प्रविष्ट। (२४/०९/२००१ से लागू)।
३. खंड संख्या २, उपरोक्त, द्वारा प्रविष्ट, उप धारा २ की एवज़ में। (२४/०९/२००१ से लागू)।
४. खंड संख्या २, उपरोक्त, द्वारा प्रविष्ट, ―भत्ते‖ की एवज़ में। (२४/०९/२००१ से लागू)।
५. खंड संख्या २, अधिनियम संख्या ५०, ईस्वी सन २००१ द्वारा ―गुज़ारा भत्ता‖ से स्थानापन्न। (२४/०९/२००१ से लागू)।

धारा १२६ (प्रक्रिया)

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धारा १२६ के प्रलेख का हिंदी अनुवाद निम्नानुसार है:–

(१) धारा १२५ के तहत कार्रवाई किसी भी ऐसे ज़िले में किसी भी व्यक्ति के खिलाफ की जा सकती है-
(ए) जहाँ वह है, या
(ख) जहाँ वह या उसकी पत्नी रहता/रहती है, या
(c) जहां वह आखिरी बार अपनी पत्नी के साथ रहा था, अथवा यदि प्रसंगोचित, नाजायज़ बच्चे की मां के साथ।

(२) इस तरह की कार्रवाई में पूरा साक्ष्य संचय उस व्यक्ति की उपस्थिति में लिया जाएगा जिस के खिलाफ़ रखरखाव खर्च के भुगतान का आदेश दिया जाना प्रस्तावित है, या, जब उसकी व्यक्तिगत उपस्थिति आवश्यक नहीं समझी जाती है, उस के याचक की उपस्थिति में, और सम्मन-मामलों के लिए निर्धारित तरीके से दर्ज किया जाएगा:

बशर्ते कि अगर मजिस्ट्रेट संतुष्ट है कि जिस व्यक्ति के खिलाफ रखरखाव के भुगतान का आदेश दिया जाना प्रस्तावित है, वह (सम्मन) सेवा से बच रहा है, या न्यायालय में उपस्थित होने की उपेक्षा कर रहा है, तो मजिस्ट्रेट मामले की सुनवाई कर सकता है और एकतरफ़ा निर्धारित कर सकता है और इस प्रकार जारी किया गया कोई भी आदेश आदेश की तारीख के तीन महीने के भीतर प्रेषित आवेदन में दर्शाये गए उचित कारण से रद्द किया जा सकता है, ऐसी शर्तों, जिन में विपरीत पक्ष को शुल्कअदा करने से सम्बंधित शर्तें सम्मिलित है, के साथ जैसी मजिस्ट्रेट न्यायोचित और उचित समझ सकता है।

(३) न्यायालय के पास धारा १२५ के तहत आने वाले आवेदनों से निपटने के वक़्त शुल्क के बारे में ऐसे आदेश देने की शक्ति होगी जैसे न्यायोचित हो सकें।

धारा १२७ (भत्ते में परिवर्तन)

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धारा १२७ के प्रलेख का हिंदी अनुवाद निम्नानुसार है:–

(१) [ऐसे किसी भी व्यक्ति की परिस्थितियों में बदलाव के सबूत पर, जिसे धारा १२५ के तहत रखरखाव या अंतरिम रखरखाव के लिए मासिक भत्ता मिल रहा है, या इसी धारा के अंतर्गत जिसे अपनी पत्नी, बच्चे, माता या पिता, प्रसंगानुसार, को रखरखाव या अंतरिम रखरखाव के लिए मासिक भत्ते का भुगतान करने के लिए निर्दिष्ट किया गया है, मजिस्ट्रेट रखरखाव या अंतरिम रखरखाव, प्रसंगानुसार, के भत्ते में ऐसा फ़ेरबदल कर सकता है जैसा वो उचित समझता है।]

(२) जहां मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि, किसी सक्षम नागर न्यायालय के किसी भी निर्णय के फलस्वरूप, धारा १२५ के तहत दिए गए किसी भी आदेश को रद्द या परिवर्तित किया जाना चाहिए, वह आदेश को रद्द कर देगा अथवा, प्रसंगानुसार, मत अनुरूप परिवर्तित कर देगा।

(३) जहां ऐसी महिला के पक्ष में धारा १२५ के तहत कोई आदेश दिया गया हो, जिसके पति ने उसे तलाक़ दिया है या जिसने अपने पति से तलाक़ लिया है, मजिस्ट्रेट, अगर वह संतुष्ट हो कि-
(a) महिला ने ऐसे तलाक की तारीख के बाद पुनर्विवाह किया है, कथित आदेश को उसके पुनर्विवाह की तारीख से रद्द कर देगा;

(b) महिला को उसके पति द्वारा तलाक़ दे दिया गया है और उसने, चाहे वह कथित आदेश की तारीख से पहले हो या बाद में, वह पूरी रक़म प्राप्त करी है जो कि, किसी भी ऐसे प्रथागत या व्यक्तिगत कानून के तहत जो पार्टियों पर लागू होता है, ऐसे तलाक़ पर देय थी, ऐसे आदेश को रद्द कर देगा -
(i) ऐसी स्थिति में जहां कथित आदेश से पहले उक्त रक़म का भुगतान किया गया था, उस तारीख से पर ऐसा आदेश पारित किया गया था:
(ii) किसी भी अन्य स्थिति में, उस अवधि की समाप्ति की तारीख से, यदि ऐसी कोई अवधि रही हो, जिसके लिए वास्तव में पति द्वारा महिला को रखरखाव का भुगतान किया गया है;

(c ) महिला ने अपने पति से तलाक़ प्राप्त कर लिया है और उसने तलाक़ के बाद स्वेच्छा से अपने [रखरखाव या अंतरिम रखरखाव, प्रसंग अनुसार] के अधिकारों का समर्पण कर दिया है , तलाक़ की तारीख से आदेश रद्द कर देगा।

१. खंड संख्या ३, सन २००१ के अधिनियम ५० द्वारा प्रविष्ट, उप धारा १ की एवज़ में। (२४/०९/२००१ से लागू)।
२. खंड संख्या ३, उपरोक्त, द्वारा प्रविष्ट, ―भत्ते‖ की एवज़ में। (२४/०९/२००१ से लागू)।
३. खंड संख्या ३, उपरोक्त, द्वारा प्रविष्ट, कतिपय शब्दों की एवज़ में। (२४/०९/२००१ से लागू)।

धारा १२८ (रखरखाव के आदेश का प्रवर्तन)

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धारा १२८ के प्रलेख का हिंदी अनुवाद निम्नानुसार है:–

[रखरखाव या अंतरिम रखरखाव और कार्रवाई के खर्च के आदेश, प्रसंग अनुसार,] की एक प्रति उस व्यक्ति को निःशुल्क दी जाएगी जिसके पक्ष में वह आदेश पारित हुआ है, या उसके अभिभावक को, यदि ऐसा कोई है, या उस व्यक्ति को [जिसे रखरखाव भत्ते या अंतरिम रखरखाव भत्ते और कार्रवाई के खर्च, प्रसंगानुसार,] का भुगतान किया जाना है; और ऐसा आदेश किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा किसी भी ऐसे स्थान पर जबरन प्रवर्तित किया जा सकता है जहां वह व्यक्ति जिसके खिलाफ वह पारित किया गया है मौजूद हो, ऐसे मजिस्ट्रेट के पार्टियों की पहचान के बारे में और [देय भत्ते, या प्रसंगानुसार, खर्च] के भुगतान न होने के बारे में संतुष्ट होने पर।

१. खंड संख्या ४, सन २००१ के अधिनियम ५० द्वारा प्रविष्ट, ―रखरखाव‖ की एवज़ में। (२४/०९/२००१ से लागू)।
२. खंड संख्या ४, उपरोक्त, द्वारा प्रविष्ट, ―जिसे भत्ते‖ की एवज़ में। (२४/०९/२००१ से लागू)।
३. खंड संख्या ४, उपरोक्त, द्वारा प्रविष्ट, ―देय भत्ते‖ की एवज़ में। (२४/०९/२००१ से लागू)।

प्रस्तुत लेख के अतिरिक्त आप सी.आर.पी.सी. धारा १२५ अंतर्गत अभ्यस्त व्यभिचारिणी पत्नी को खर्चा नामंज़ूरी के बारे में लिखित लेख भी पढ़ सकते हैं।

You may also wish to read an article about denial of maintenance in CrPC 125 on grounds of adultery. Alternatively, you may wish to read an article about denial of maintenance in CrPC 125 (especially on grounds of desertion).



मनीष उदार द्वारा मूल अंग्रेज़ी से अनुवादित
मनीष उदार द्वारा प्रकाशित।

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अंतिम अद्यतन १३ अप्रैल २०२१ को किया गया
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